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क्या लिखूं की लिखने को अलफ़ाज़ नहीं मिलतें............!!
है तिश्नगी आँखों की जुस्तजू भी तू
क्या करूँ जो अपने परवाज़ नहीं मिलतें.........!!
है खलिश इस दिल की दरारों में कई
क्या करूँ जो अपने एसास नहीं मिलते....!!
जी लें हम भी कभी मुकद्दर की गिरफ्त से छोट कर
क्या करूँ जो कामयाबी के राज़ नहीं मिलते.........!!
एक ज़ोस्त्जो है, तिश्नगी है, एहसास MERAतू
क्या करूँ जो आपके मुक़दर के मिजाज़ नहीं मिलते.....!!
एहसास अपना, अपने सीने का गम बन गया.....
अब क्या कहूँ की दिखाने को वो दाग नहीं मिलतें..........!!
.....................नसरीन......................
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